अदृश्य लौ


चाँदनी रात की चुप्पी में,
जहाँ फुसफुसाहटें छिपी रहती हैं, नज़रों से दूर,
एक प्रेम जो हवा में छुपा है,
अदृश्य, पर महसूस होता है, एक कोमल जाल।

ना कोई शब्द, ना कोई नज़र मिलती,
फिर भी दिल गुपचुप नाचते हैं, राहें भटकी हुई।
मन के कोनों में जहाँ सपने बसे हैं,
वहाँ एक बंधन खिलता है, जिसे समय तोड़ नहीं सकता।

छोटे संकेतों में, गुजरते पलों में,
एक स्पर्श, एक आह, आँखों में चमक,
यह प्रेम वहाँ है जहाँ सीमाएँ मिलती हैं,
एक मौन सिम्फनी, एक छिपी हुई रेखा।

हर छोटे इशारे में, बिना ध्यान दिए,
एक अप्रत्यक्ष समर्पण, शुद्ध, संजीदा।
एक लौ जो धीरे-धीरे चमकती है, दृष्टि से दूर,
फिर भी जलती है, गहराई से, तीव्र और सच्ची।

वो प्रेम जो महसूस होता है पर कभी बोला नहीं जाता,
वो एक वादा है, अनजाना, पर अटूट।
दिलों की दुनिया में, अदृश्य पर वास्तविक,

जीती है अप्रत्यक्ष जोश की भावना।




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